कमरे में घुसते ही वो बोला , " पक गया हूँ भाई उससे , जो था वो कम से कम प्यार तो नहीं था | College में तो उससे बात करने के लिए तड़पा करता था | आज हमारी सिर्फ दूसरी मुलाकात थी और ऐसा लग रहा था जैसे हमारे बीच में बात करने के लिए कोई common topic ही नहीं है | "
छोटा सा ही था रस्ता , फिर भी थक गए ,
चाहा नहीं था शायद , उतनी शिद्दत से कभी तुमको ,
दो बार ही मिले हैं , उतने में पक गए ||
कुछ बोलना था तुमको , कुछ और बक गए ,
कुछ बीच में ही जैसे , कह कर अटक गए ,
खामोश ही थे दोनों , क्या बात करें आखिर ,
कुछ बात भी नहीं की , बिन बोले पक गए ||
साथ-साथ दोनों , कुछ दूर तक गए ,
उतने में ही कितने , पंगे अटक गए ,
जब आदतें ज़रा भी , मिलती नहीं हमारी ,
अच्छा ही हुआ तुमसे , जल्दी ही पक गए ||
किसी और को पकाओ ,
मेरे पास से तो जाओ ,
थोड़ा तरस तो खाओ ,
देखो हम पक गए ||
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@!</\$}{
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nice.......
ReplyDelete:-) कोलेजिया भाषा में लिखी सहज अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteथोड़े एहसास और डालो बस.....
अनु
:) क्या बात है।
ReplyDeleteप्रशंसनीय
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