13 Oct 2012

बचपन

शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे अपना बचपन वापस नहीं चाहिए -

अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,

तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता |

वो फिर से मैं करता कोई मीठी गलती ,

वो कोई मुझे ; प्यार से फिर बताता |

वो जिद फिर से करता खिलौनों की खातिर ,

वो फिर से मचलता ; झूलों की खातिर |

वो ललचायी नजरें दुकानों पे रखता ,

वो आँखों से टॉफी के हर स्वाद चखता |

वो बचपन के साथी फिर से मैं पाता ,

वो तुतली जुबाँ में साथ उनके मैं गाता |

वो मालूम न होते जो दुनिया के बंधन ,

वो गर पाक हो पाते इक बार ये मन |

मैं फिर से ये गुम-सुम जवानी न पाता ,

अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,

तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता ||
.
@!</\$}{
.

24 comments:

  1. बहुत बेशकीमत दौलत माँग रहे हो वत्स!! यह एक बार हाथ से फिसल जाए तो दुबारा हाथ नहीं आती!!
    लेकिन इसे पाने का एक ही रास्ता है, अपने दिल की किसी कोने में उस बच्चे को ज़िंदा रखो.. बकौल राजेश रेड्डी
    मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा,
    बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!
    बहुत अच्छा लगा पढकर!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बाऊ जी , अगर खुदा से मांग रहा हूँ तो कुछ बेशकीमती ही माँगूँगा :)
      ये शेर शायद मैंने एक बार आपके ब्लॉग में भी पढ़ा है , बहुत ही सुन्दर और यथार्थपरक है |

      सादर

      Delete
  2. वाह...
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद शास्त्री जी

      सादर

      Delete
  3. हमारा कमेन्ट गया स्पैम में!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बाऊ जी , गया जरूर लेकिन वहाँ टिक नहीं पाया |
      आपका एक - एक कमेन्ट इतना कीमती है कि उसे स्पैम में ज्यादा देर रहने नहीं दिया जा सकता |
      :)

      Delete
  4. बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी!

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद प्रतिभा जी ,
      आपने तो अपने कमेन्ट से मुझे एक और कविता की प्रेरणा दे दी |
      धन्यवाद

      सादर

      Delete
  5. बहुत सुन्दर .. बचपन तो ऐसा ही होता है..

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अरविन्द जी ,
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है |

      सादर

      Delete
  6. अहा! बचपन को तो मैं जाने ही नहीं देती ...बहुत पहले से ही माँग के रखा है ...

    लेकिन आपने शक क्यों किया --" अगर माँग पाता....."
    माँग लो बे-झिझक और देखो मिल जायेगा....

    और अब नाम ज्यादा अच्छा लग रहा है... धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. माता जी,
      वो मासूमियत कहीं दिल में ही छिपी है , मासूमियत के साथ मांगूंगा अपने आप ही मिल जायेगा | लेकिन कलयुग है इसीलिए पता नहीं भगवान सुनेंगे या नहीं :)
      नाम के लिए धन्यवाद |

      सादर

      Delete
  7. बहुत खूबसूरत लिखा है आकाश.....
    तुम्हारी लेखनी दिन-ब-दिन निखरती जा रही.......
    और जो माँगा है खुदा से तो ये फ़र्ज़ है तुम्हारा...अपनी मासूमियत और सच्चाई सदा बनाये रखना...
    ढेर सा आशीर्वाद...
    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनु दीदी ,
      आपको लेखनी में सुधार दिखा |

      मैं हर बार कोशिश करता हूँ कि भले ही मुद्दा कितना भी गहरा हो , उस पर मासूमियत और सच्चाई के साथ लिखूं और आगे भी ये प्रयास जारी रखूँगा |

      सादर

      Delete
  8. बहुत प्यारी बचपन की तरह ही मासूम रचना हर कोई अपने दिल में अपना बचपन रखता है जब जी चाहता है उससे मिलता बातें करता है बहुत बढ़िया वक़्त मिले तो आकाश मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार राजेश जी |
      और अपने ब्लॉग का लिंक देने के लिए हार्दिक धन्यवाद |

      सादर

      Delete
  9. वाकई...बचपन के सुहाने दि‍न..न भूले कोई

    ReplyDelete
  10. आपके बाद हमारा नंबर है खुदा से ई सब मांगने का...|

    सही में काश...!फिर से वो दिन जीने को मिल जाते |आज भी किसी बच्चे को देखता हूँ तो उसमें खुद को पाता हूँ...और दिल उन यादों की गलियों के तरफ मुड़ चुकी होती है |

    ReplyDelete
  11. बहुत बढ़िया रचना | बचपन की याद आ गयी |
    मेरे ब्लॉग में पधारें और जुड़ें |
    नई पोस्ट:- हे माँ दुर्गा

    ReplyDelete
  12. खुबसूरत अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  13. मुझे भी तो यही चाहिए ... उम्र का लम्बा अंतराल है,पर ख्वाहिश यही है

    ReplyDelete
  14. बचपन की याद आ गयी ...आकाश भाई

    ReplyDelete
  15. Ahh..seriously would love to travel back to my childhood days!! You put words into almost everyone's thoughts..

    ReplyDelete
  16. सच कहूँ तो मैं वो बचपन का ज़माना याद करता हूँ जब रात को सोते वक़्त बस यही tension होती थी की साला आज ball गुम हो गया है कल कैसे क्रिकेट खेलेंगे। बड़े क्या हो गए हैं .... आफत हो गए हैं !

    ----
    कोई बच्चो सा कर जाये मन,
    सीधे सरल हो जाये अब हम ,
    रंगों को देखकर यूं ही मुस्कुरायेँ ,
    तितलिया पकड़ने जाये अब हम !

    ReplyDelete