अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,
तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता |
वो फिर से मैं करता कोई मीठी गलती ,
वो कोई मुझे ; प्यार से फिर बताता |
वो जिद फिर से करता खिलौनों की खातिर ,
वो फिर से मचलता ; झूलों की खातिर |
वो ललचायी नजरें दुकानों पे रखता ,
वो आँखों से टॉफी के हर स्वाद चखता |
वो बचपन के साथी फिर से मैं पाता ,
वो तुतली जुबाँ में साथ उनके मैं गाता |
वो मालूम न होते जो दुनिया के बंधन ,
वो गर पाक हो पाते इक बार ये मन |
मैं फिर से ये गुम-सुम जवानी न पाता ,
अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,
तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता ||
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बहुत बेशकीमत दौलत माँग रहे हो वत्स!! यह एक बार हाथ से फिसल जाए तो दुबारा हाथ नहीं आती!!
ReplyDeleteलेकिन इसे पाने का एक ही रास्ता है, अपने दिल की किसी कोने में उस बच्चे को ज़िंदा रखो.. बकौल राजेश रेड्डी
मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा,
बड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!
बहुत अच्छा लगा पढकर!!
बाऊ जी , अगर खुदा से मांग रहा हूँ तो कुछ बेशकीमती ही माँगूँगा :)
Deleteये शेर शायद मैंने एक बार आपके ब्लॉग में भी पढ़ा है , बहुत ही सुन्दर और यथार्थपरक है |
सादर
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
धन्यवाद शास्त्री जी
Deleteसादर
हमारा कमेन्ट गया स्पैम में!!
ReplyDeleteबाऊ जी , गया जरूर लेकिन वहाँ टिक नहीं पाया |
Deleteआपका एक - एक कमेन्ट इतना कीमती है कि उसे स्पैम में ज्यादा देर रहने नहीं दिया जा सकता |
:)
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी!
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिभा जी ,
Deleteआपने तो अपने कमेन्ट से मुझे एक और कविता की प्रेरणा दे दी |
धन्यवाद
सादर
बहुत सुन्दर .. बचपन तो ऐसा ही होता है..
ReplyDeleteधन्यवाद अरविन्द जी ,
Deleteब्लॉग पर आपका स्वागत है |
सादर
अहा! बचपन को तो मैं जाने ही नहीं देती ...बहुत पहले से ही माँग के रखा है ...
ReplyDeleteलेकिन आपने शक क्यों किया --" अगर माँग पाता....."
माँग लो बे-झिझक और देखो मिल जायेगा....
और अब नाम ज्यादा अच्छा लग रहा है... धन्यवाद
माता जी,
Deleteवो मासूमियत कहीं दिल में ही छिपी है , मासूमियत के साथ मांगूंगा अपने आप ही मिल जायेगा | लेकिन कलयुग है इसीलिए पता नहीं भगवान सुनेंगे या नहीं :)
नाम के लिए धन्यवाद |
सादर
बहुत खूबसूरत लिखा है आकाश.....
ReplyDeleteतुम्हारी लेखनी दिन-ब-दिन निखरती जा रही.......
और जो माँगा है खुदा से तो ये फ़र्ज़ है तुम्हारा...अपनी मासूमियत और सच्चाई सदा बनाये रखना...
ढेर सा आशीर्वाद...
अनु
धन्यवाद अनु दीदी ,
Deleteआपको लेखनी में सुधार दिखा |
मैं हर बार कोशिश करता हूँ कि भले ही मुद्दा कितना भी गहरा हो , उस पर मासूमियत और सच्चाई के साथ लिखूं और आगे भी ये प्रयास जारी रखूँगा |
सादर
बहुत प्यारी बचपन की तरह ही मासूम रचना हर कोई अपने दिल में अपना बचपन रखता है जब जी चाहता है उससे मिलता बातें करता है बहुत बढ़िया वक़्त मिले तो आकाश मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार राजेश जी |
Deleteऔर अपने ब्लॉग का लिंक देने के लिए हार्दिक धन्यवाद |
सादर
वाकई...बचपन के सुहाने दिन..न भूले कोई
ReplyDeleteआपके बाद हमारा नंबर है खुदा से ई सब मांगने का...|
ReplyDeleteसही में काश...!फिर से वो दिन जीने को मिल जाते |आज भी किसी बच्चे को देखता हूँ तो उसमें खुद को पाता हूँ...और दिल उन यादों की गलियों के तरफ मुड़ चुकी होती है |
बहुत बढ़िया रचना | बचपन की याद आ गयी |
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में पधारें और जुड़ें |
नई पोस्ट:- हे माँ दुर्गा
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteमुझे भी तो यही चाहिए ... उम्र का लम्बा अंतराल है,पर ख्वाहिश यही है
ReplyDeleteबचपन की याद आ गयी ...आकाश भाई
ReplyDeleteAhh..seriously would love to travel back to my childhood days!! You put words into almost everyone's thoughts..
ReplyDeleteसच कहूँ तो मैं वो बचपन का ज़माना याद करता हूँ जब रात को सोते वक़्त बस यही tension होती थी की साला आज ball गुम हो गया है कल कैसे क्रिकेट खेलेंगे। बड़े क्या हो गए हैं .... आफत हो गए हैं !
ReplyDelete----
कोई बच्चो सा कर जाये मन,
सीधे सरल हो जाये अब हम ,
रंगों को देखकर यूं ही मुस्कुरायेँ ,
तितलिया पकड़ने जाये अब हम !