क्या एक घर में रहने वाले लोगों को हम उनके कमरों से जानते हैं ?
क्या एक घर में रहने वाले लोग एक-दूसरे के कमरों में नहीं जाते ?
क्यूँ हमारे देश में यू.पी.-बिहारी जैसे जुमले चलते हैं ?
या फिर क्यूँ पूर्वी भारत के लोगों को अपने देश में ही परायों की तरह रखा जाता है ?
बचपन से ही हमको ,
एकांत पसंद आता था ,
वो कमरा ,
एकदम कोने में था ,
न शोर , न शराबा ,
हम बचपन से ही वहीँ रहे |
अब हमरा कोई नाम नहीं ,
बस इक ही ठो पहिचान है ,
अपने घर मा रह के भी ,
हम कोने वाले कमरा के हैं |
हमरे संग वाले कहते थे ,
हमको कोई गिला नहीं था ,
सब घर वाले भी कहते थे ,
ज्यादा फिर भी गिला नहीं था ,
अब उन सब के बच्चे आये हैं ,
वो का जानें हम हैं कौन ,
सब उनका ये ही सिखलाये ,
हम कोने वाले कमरा के हैं |
हमरे सब भाई-भौजाई ,
खूब कमाए दुनियादारी ,
हम कोने मा पड़े रहे ,
नहीं सीखे तनिको हुसियारी ,
अब हम गंवार , उनकी नजरों में ,
नहीं पढ़े हैं , नहीं लिखे हैं ,
नहीं कोई मैनर-वैनर है ,
बात भी करना नहीं सिखे हैं ,
हम तो अपने घर में रहकर भी ,
कोने वाले कमरा के हैं |
पूरा घर सब पुतवाये हैं ,
बढ़िया वाला कलर करा के ,
हम अपना कमरा पुतवाये ,
चूना और खड़िया घुरवा के ,
हम भी मेहनत बहुत किये थे ,
पूरा घर पुतवाने में ,
उनका हम इक दाग लगे ,
उनके राजघराने में ,
हम , बाहर आते हैं तो उनका ,
मुँह गुब्बारा बन जाता है ,
इक ही माँ के बेटे हैं ,
ये सब उनको भुल जाता है ,
क्या करें , अपने घर में रह के भी ,
हम कोने वाले कमरा के हैं |
बस इक हमरी अम्मा हैं ,
हम जिनके खातिर रुके हुए हैं ,
हम जायेंगे , वो मर जाएँगी |
अपनों से उपहार में पाए ,
जख्म बहुत से ढंके हुए हैं ,
दिखलायेंगे , वो डर जाएँगी |
जख्म दिखाते नहीं किसी को ,
बस हँसते ही रहते हैं ,
उससे भी तकलीफ है उनका ,
हमको पागल कहते हैं ,
एही कारन चुपचाप , अकेले ,
अपने कमरा मा बंद रहे ,
ई पर सब फिर से बोले
हम कोने वाले कमरा के हैं |
अपने घर मा रहकर भी ,
हम आजहू सबसे अलग-थलग हैं ,
काहे कि सब ये ही कहते हैं
हम कोने वाले कमरा के हैं |
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बहुत बढ़िया ......
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति....
अनु
धन्यवाद अनु दीदी ,
Deleteआपकी राय शुरुआत से ही मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रही है |
सादर
-आकाश
बहुत ही खूबसूरत सिम्बल का प्रयोग करके अपनी बात कहने की कोश्सिश की है.. एक बड़े ही संजीदा मुद्दे को जिस प्रकार सहेजकर प्रस्तुत किया वह निश्चित तौर पर सराहनीय है.. कोने वाले कमरे में रहने वाले की पहचान भले ही न प्रकट की गयी हो, लेकिन भाषाई तौर पर अप्रत्यक्ष रूप से वह व्यक्त होता है.. यह रचना अपना सन्देश संप्रेषित करने में सफल हुई है... बधाई वत्स!!
ReplyDeleteबाऊ जी , आपके ब्लॉग से बहुत कुछ सीखा है , ये उसी का नतीजा है | आपने बहुत बार हम लोगों का दर्द बयां किया था , ये मेरी उसी के ऊपर एक छोटी सी कोशिश थी |
Deleteआपने कोशिश की सराहना की और आशीर्वाद दिया , "हमरा छाती चौड़ा हुई गया" |
सादर प्रणाम
@सलिल भैया,हमें छोटे उस्ताद थोक में मिलेहैं .... :-)
Delete"नहीं पढ़े हैं , नहीं लिखे हैं , नहीं कोई मैनर-वैनर है , बात भी करना नहीं सिखे हैं , हम तो अपने घर में रहकर भी , कोने वाले कमरा के हैं "
ReplyDeleteई रचना पढ़ के हमरा मन भी वही कोने वाला कमरा का डिमांड कर रहा है | बड़ा सूनर लिखे हों और जज्बात त उफान मार रहा है एकदम...|
थन्कू मंटू भाई , चाहे कोई हमका कुछौ बोले लेकिन हमका तो ऊ कोने वाला कमरा ही सुहाता है , हमरा बचपने से साथी रहा है ऊ कमरा |
Deleteआकाश
वो कमरा तो वही है जहाँ मैं रहती हूँ ...
Deleteमाता जी ,
Deleteअसल में हम सब कोने वाले कमरे के ही हैं , क्यूँ कि बीच में तो आँगन होता है |
सादर
का लिक्खे हो आकाश भइवा एकदम मन को छू गया .....
ReplyDeleteधन्यवाद भाई |
Deleteवाह भई वाह.....| हम कोने वाले कमरा के हैं, बहुत अच्छा लगा पढ़कर ....| सच में हमारे देश में दिशा और धर्म के आधार पर बांटकर मानवता और समाज को एक दूसरे से अलग कर दिया हैं.....|
ReplyDeleteवो कहते है न....North Indian, South Indian etc. अरे भाई indian क्यों नहीं कहते हैं.....|
खैर आपकी रचना पढ़कर हमारे भी जज्बात उन्छाले मार रहा हैं......
रितेश जी ,
Deleteसिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए |
आपको अच्छी लगी , जानकर खुशी हुई |
आभार
सादर
बहुत खूब आकाश बाबू ... मान गए भाई !
ReplyDeleteविश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर देश के नेताओं के लिए दुआ कीजिये - ब्लॉग बुलेटिन आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम देश के नेताओं के लिए दुआ करते है ... आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
शिवम भैया ,
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद |
और हम भी पूरी तरह से आपकी दुआओं में शामिल हैं |
सादर
मन को छू लेने वाली रचना!!
ReplyDeleteमधु जी ,
Deleteधन्यवाद |
सादर
इस कोनेवाले कमरे के कई सिमटे एहसास इस अभिव्यक्ति में हैं ....
ReplyDeleteग़ज़ब की कविता आकाश भाई ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeleteOn of the best poems you have written!! hats off!! Loved the use of metaphor..Good work!!
ReplyDeletebhai saab aap to touch kr gye :)
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