16 Oct 2012

नवरात्रि - माँ का स्वागत



“बात की आपने ?”

“अभी नहीं , करता हूँ |”

कल से नवरात्रि शुरू हो रहीं थीं | अब दशहरा तक घर में मेले जैसा माहौल रहने वाला था | सभी यार-दोस्तों और जान-पहचान वालों को भी निमंत्रण भिजवा दिया गया | बाहर भी तरह-तरह के पंडाल सज चुके थे | पूरा माहौल ही माँ के रंग में रंगा था | वो दोनों भी जगतजननी अम्बे माँ के बहुत बड़े भक्त थे | पूरा घर बहुत ही सुन्दर तरीके से सजाया गया था | बस एक आखिरी काम बचा था –

“बात की आपने ?”, उसने पूजा की तैयारियों में लगे अपने पति से पूछा |

“अभी नहीं , करता हूँ |”, वो बोला और अपनी जगह से उठकर बाहर बैठक में जाने लगा |

बैठक में सोफे पर एक बुढिया बैठी थी | पुरानी सी सफ़ेद धोती , जिसका पल्लू पीछे से घूमकर सर पर पड़ा हुआ था , चेहरे पर झुर्रियाँ , पूरा शरीर काँपकर अंजाने में ही उसकी उम्र का अंदाजा लगवा रहा था | पास की ही एक अलमारी में एक पुराना , आधा फटा हुआ राज-रतन का झोला रखा हुआ था | उसी के बगल में एक तस्वीर रखी थी , शायद उस बुढिया के जवानी के दिनों की रही होगी | साथ में एक आदमी भी था , शायद उसका पति होगा |

“माँ ?”, वो आदमी उस बुढिया को संबोधित करते हुए बोला |

कोई जवाब नहीं |

“माँ ?”, इस बार कुछ तेज आवाज में , थोडा झुककर |

“हाँ लल्ला ?”, बुढिया ने आँखों में चमक भर के पूछा |

“माँ एक बात है ?”

“का ?”

“तुम बुरा तो नहीं मानोगी ?”

इतना सुनते ही उसकी आँखों की चमक तेजी से कम हो गयी , वापस हिम्मत करके उसने जवाब दिया –

“तुम्हरा काहे का बुरा मनिबे लल्ला |”

लेकिन उस बुजुर्ग दिल में अभी भी एक डर था कि पता नहीं कौन सी बात होगी |

“माँ , तुम नौ दिन किचन के साथ वाले स्टोर रूम में रह जाओ न , असल में बहुत लोग घर में आयेंगे-जायेंगे , तुम्ही को तकलीफ होगी | वहाँ एकांत रहेगा | आराम से मैया की पूजा करना |”

उसने एक पल के लिए स्थिर निगाह से अपने लड़के की तरफ देखा , फिर उसकी नजर वापस उसी अलमारी पर गयी | वहाँ एक और तस्वीर भी रखी थी , उस तस्वीर में वही बुढिया और वही आदमी थे बस साथ में एक बच्चा और था जिसे उस औरत ने गोद में उठा रखा था | बैकग्राउंड में कानपुर का प्रसिद्द तपेश्वरी मंदिर दिख रहा था | वो लोग हर नवरात्रि वहाँ माँ के दर्शन करने और मेला घूमने जाते थे |

उसके होठों पर एक उदासी भरी मुस्कान फ़ैली , उसने अपना झोला उठाया और स्टोर की तरफ चल दी |

“माँ ये तस्वीरें भी लेती जाओ |”, उसके लड़के ने वो सारी पुरानी तस्वीरों को उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा |

वो अपना सारा सामान लेकर स्टोर रूम में पहुँच चुकी थी , उसके लड़के ने अपने घर को बाहर से भीतर तक एक नजर देखा और बोला “नवरात्रि की सजावट तो हो गयी अब बस माँ के स्वागत की तैयारियां करनी हैं |”
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6 comments:

  1. अगले नवरात्रा पर वो आदमी जब अपनी माँ को घर से बाहर चले जाने के लिए बोलेगा...तो हैरानी की बात नही होनी चाहिए...|

    खैर आपको नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएँ...|

    सादर |

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  2. मुझे तो मेरे स्वर्गीय पिताजी याद आ गए!! वे दुर्गा-पूजा में माता के दर्शन करके आते समय हमेशा कहा करते थे कि इनमें से कई लोग ऐसे भी होंगे जो माता के सामने सिर नवा रहे हैं और घर में अपनी माँ को बंद करके आये होंगे.. और उनको बहुत खुशी होती थी जब किसी व्यक्ति को किसी वृद्धा का हाथ थामे घूमते देखते थे!

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  3. माँ का स्वागत माँ के अनादर के साथ ...

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  4. क्या कहूँ आकाश.....
    ऐसे भक्त खुद देखे हैं मैंने.....
    मर्मस्पर्शी कथा....
    माँ तुम पर और तुम्हारी लेखनी पर यूँ ही कृपा बनाए रखें...
    सस्नेह
    अनु
    (मेरी अनुपस्थिति का बुरा न माना करो....तुमको पढ़कर बहुत अच्छा लगता है...)

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  5. एक सच यह भी है ... बहुत अच्‍छा लिखते हैं आप ...
    शुभकामनाएं आपकी लेखनी को

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  6. Yet another heart-rendering post from your pen!!

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