“आकाश” के उस पार ,
चलो घूमकर आते हैं ,
खिलती मुस्कानों के पीछे ,
कुछ दबा हुआ सा है शायद ,
चलो देखकर आते हैं ,
गहरा घुप्प अँधेरा है ,
पर एक किरण झिलमिल सी है ,
उसे उठाकर लाते हैं ,
नफरत तो काफी देख चुके ,
कुछ प्यार बचा है थैली में
,
आओ उसको फैलाते हैं ,
बादलों की ओट में ,
कोई रूठकर बैठा है शायद ,
जाकर उसे मनाते हैं ,
“आकाश” के उस पार ,
चलो घूमकर आते हैं ||
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@!</\$}{
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@!</\$}{
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nice starting.
ReplyDeletegood luck :)
thnx...
Deleteगहरे जज्बात...बहुत खूब |
ReplyDeleteआपको इस सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएँ |
सादर |
धन्यवाद .
Delete... बेहद प्रभावशाली जज्बात
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteghoom aaao dekh aao..sab sundar hai sanchit mann sa..
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन "आकाश जी" बहुत ही उम्दा प्रस्तुति शुभकामनायें ....
ReplyDeleteआप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।
ReplyDeleteमैं भी इस अन्वेषण पर निकलने को उत्सुक हूँ।
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