लालटेन की लौ को तेज कर के जैसे ही वो अपनी किताबें उठाकर चटाई पर बैठी , उसे अपने बाप की आवाज सुनायी दी - " क्या नौटंकी कर रही है ! जा , चौके में जाकर अम्मा का हाथ बंटा , कुछ घर का काम काज सीख | तुझे पढ़ा कर हमें बैरिस्टर नहीं बनाना | "
" जी , बाबू जी |"
वो उठी , उसने एक नजर आँगन में बेफिक्र होकर खेलते अपने भाई की ओर देखा और मन मसोसकर चौके की तरफ बढ़ दी--
मेरी आजादी गुम सी है,
दो
प्यासी आँखें नम सी हैं ,
मुझको
भी तो उड़ना है ,
इस
पिंजरे को हटवा दो ,
पंख
मेरे भी लगवा दो ||
जो
तुमसे पाया , उतने में
अब
तक सारी खुशियाँ देखीं ,
खिड़की
से नजरें दौड़ाकर ,
अब
तक ये दुनिया देखी ,
मुझको
खुद कुछ पाना है ,
जो
बेड़ी हैं वो खुलवा दो ,
पंख
मेरे भी लगवा दो ||
मुझमें
भी तुम सी हिम्मत है ,
मेरे
भी ऊंचे अरमां हैं ,
उस
पार मुझे भी जाना है ,
दीवार
खड़ी है , गिरवा दो ,
पंख
मेरे भी लगवा दो ||
.
@!</\$}{
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Simply loved this one!! Truly a reflection of the tragic situation plaguing this country :(
ReplyDeletethanks.
Deletethis is really a big problem and this is not only in small vilages or towns , it is in big prosperous families also.:(
i like this one
ReplyDeletethank u.. :)
Deleteएक कल्पना की उड़ान मेरी भी .....:)))
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