30 Aug 2012

पंख मेरे भी लगवा दो


लालटेन की लौ को तेज कर के जैसे ही वो अपनी किताबें उठाकर चटाई पर बैठी , उसे अपने बाप की आवाज सुनायी दी - " क्या नौटंकी कर रही है ! जा , चौके में जाकर अम्मा का हाथ बंटा , कुछ घर का काम काज सीख | तुझे पढ़ा कर हमें बैरिस्टर नहीं बनाना | "
" जी , बाबू जी |"
वो उठी , उसने एक नजर आँगन में बेफिक्र होकर खेलते अपने भाई की ओर देखा और मन मसोसकर चौके की तरफ बढ़ दी--



मेरी आजादी गुम सी है,
दो प्यासी आँखें नम सी हैं ,
मुझको भी तो उड़ना है ,
इस पिंजरे को हटवा दो ,
पंख मेरे भी लगवा दो ||

जो तुमसे पाया , उतने में
अब तक सारी खुशियाँ देखीं ,
खिड़की से नजरें दौड़ाकर ,
अब तक ये दुनिया देखी ,
मुझको खुद कुछ पाना है ,
जो बेड़ी हैं वो खुलवा दो ,
पंख मेरे भी लगवा दो ||

मुझमें भी तुम सी हिम्मत है ,
मेरे भी ऊंचे अरमां हैं ,
उस पार मुझे भी जाना है ,
दीवार खड़ी है , गिरवा दो ,
पंख मेरे भी लगवा दो ||
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@!</\$}{
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5 comments:

  1. Simply loved this one!! Truly a reflection of the tragic situation plaguing this country :(

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    1. thanks.
      this is really a big problem and this is not only in small vilages or towns , it is in big prosperous families also.:(

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  2. एक कल्पना की उड़ान मेरी भी .....:)))

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