31 Oct 2012

प्रियतम का प्यार - हास्य कविता ?

कहा जाता है , खुद अपना ही मजाक उड़वाते समय एक जोकर अपना चेहरा सिर्फ इसलिए रंग लेता है ताकि उसके चेहरे पर छिपे दर्द कोई देख न ले | ज़रा कल्पना कीजिए , कैसी होगी उसकी जिंदगी जो खुद अपने ही मरने की दुआएं मांग रहा है | शायद नर्क से भी बदतर |
हमारे समाज में स्त्री को हमेशा सिखाया जाता है कि पति ही उसका परमेश्वर है | उसे हर हाल में अपने भगवान की आज्ञा माननी है , उसकी सेवा करनी है | हमारी कविता की नायिका भी उसी 'अधूरी शिक्षा' की शिकार है | मुक्ति पाकर वो बहुत खुश है | अपने पति को ईश्वर मानते हुए और इस पूरी सोच और समाज पर दर्द भरा 'कटाक्ष' करती हुई वो अपनी कहानी सुनाती है -



सारी रात प्रियतम हमरे ,
दिल लगाकर पीटे हमको ,
फर्श पोंछने का दिल होगा ,
चोटी पकड़ घसीटे हमको ,
गला दबाया प्यार से इतने ,
अँखियाँ जइसे लटक गयीं हो ,
गाली इतनी मीठी बांचे ,
शक्कर सुनकर झटक गयी हो ,
पिस्तौल दिखा रिकवेस्ट किये ,
हम और किसी को न बतलायें ,
हम ; मन में ये फरियाद किये ,
ये प्यार वो फिर से न दिखलायें | |

वो तो अपनी सारी चाहत ,
सिर्फ हमीं पर बरसाते थे ,
चाय से ले कर खाने तक की ,
तारीफें ; मुक्कों से कर जाते थे ,
रोज रात को शयन कक्ष में ,
सुरपान नियम से करते थे ,
फिर देवतुल्य अपनी शक्ति का ,
हमें प्रदर्शन करते थे ,
कसम से इतने वीर थे वो कि ,
हम तुमको क्या-क्या बतलायें ,
बस मन में ये फरियाद किये ,
ये प्यार वो फिर से न दिखलायें | |

हम ही ससुरी पगली थीं ,
जो प्यार से उनके ऊब गयी थीं ,
उनके कोमल झापड़ की ,
उन झंकारों में डूब गयीं थीं ,
एक रोज हम दीवानी ने भी ,
अपना स्नेह ; उन पर लुटा दिया ,
उनके प्यारे मुक्के के बदले ,
उनको भी झापड़ जमा दिया ,

अब इतना सज्जन मानव आखिर ,
ये कैसे स्वीकार करे ,
उसके निस्वार्थ प्यार के बदले ,
पत्नी भी उसको प्यार करे ,
बस ठान लिया उसने मन में ,
हमको सर्वोच्च प्रेम-सुख देगा ,
हम मृत्यु-लोक(पृथ्वी) में भटक रही थीं ,

हमको परम मोक्ष वो देगा ,

गंगाजल का लिया कनस्तर ,
फिर हम पर बौछार कराई ,
गंगा इतनी मलिन थीं हमको ,

केरोसीन की खुशबू आई ,
फिर अंततयः उस पाक ह्रदय ने ,
शुद्ध अग्नि में हमें तपाया ,
हमरी अशुद्ध देह जलाकर ,
सोने जैसा खरा बनाया ,


अब भी जाने कितने दानव ,
पति-परमेश्वर कहलाते हैं ,
हम भी शक्ति-स्वरूपा हैं ,
ये जाने क्यूँ भुल जाते हैं ,
पति भी तो अर्द्धांग है अपना ,
फिर , उसको क्यूँ ईश्वर कहते हैं ,
वो अपना पालनहार नहीं है ,
फिर , चुप रहकर क्यूँ सब सहते हैं ,
वो सुबह न जाने कब होगी ,
जब नारी स्वतंत्र हो पाएगी ,
भेद मिटेगा पति-पत्नी का ,
और प्यार से न घबराएगी |
.
@!</\$}{
.

20 comments:

  1. हास्य कविता में छुपा संदेश अच्छा लगा...

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  2. हंसी हंसी में बहुत बड़ी बात कह दी ! .... प्यार का स्वरुप अपना सही, दूसरे के लिए सजा और सब खत्म

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  3. अच्छी लगी आपकी कविता, मज़ाक मज़ाक में बहुत बड़ी बात कह गए आप | मेरे भी ब्लॉग में आयें और जुड़े |

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  4. बहुत अच्छा लिखा है आकाश...
    हास्य में छिपा कटाक्ष दिल को छू गया...

    सस्नेह
    अनु

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  5. बहुत खूब....आकाश....
    कविता के साथ-साथ काफी बड़ी बात कह दी आपने....|
    अच्छा लिखा हैं...

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  6. आपका प्रयास सफल हुआ ... हास्‍य में छिपा एक बेहतरीन संदेश भी दिया है आपकी अभिव्‍यक्ति ने
    लाजवाब प्रस्‍तुति

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  7. बहुत ही अच्छा लिखा है आकाश जी..
    हास्य-हास्य में बहुत बड़ी बात कह दी..
    लाजवाब ....
    :-)

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  8. बहुत सुंदर ...हास्य व् भाव दोनों से सजी रचना

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  9. बेहतरीन संदेश कविता के साथ

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  10. करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!

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  11. nari jb tak khud ko kamjor samjhegi tb tak aisa hoga . aise devo k liye to durga roop hota hai nari ka..........

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  12. jab tak nari khud ko kamjor manegi tab tak aise kratya honge, pata nai nari ka durga roop kisi ko yaad q nai ata..........

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  13. An accurate observation, no country can progress unless all its sections progress equally. Without women emancipation, no country can become, or even deem to be called, a developed nation-state. As of now, it is a curse to be born a woman in this country, & as you said, if nothing is done to change this grave situation, the loss would be that of the entire society.

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  14. उफफफफफ्फ़........:((
    कैसा हैवान था वो ?
    वैसे बेहतरीन अभिव्यक्ति आकाश ! तभी तो हमारे हाथों ऐसे शब्द टाइप हो गये !
    Keep it up !
    ~God Bless !!!

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  15. वो सुबह न जाने कब होगी ,
    जब नारी स्वतंत्र हो पाएगी ,
    पति को एक दोस्त मानेगी ,
    और प्यार से न घबराएगी |
    अब जाकर कविता का सन्देश दिल को छू रहा है.. हमारे समाज में अभी भी कितने घरों में यह दुर्दशा दिखाई दे ही जाती है.. लेकिन समय बदल रहा है बहुत तेज़ी से.. कविता के अंतिम भाग थोड़ा बदलाव अभी भी अपेक्षित है.. तुमने लिखा है "पति को दोस्त मानेगी".. वो तो मानती ही है, पति नहीं मानता..
    वो सुबह न जाने कब होगी ,
    जब नारी स्वतंत्र हो पाएगी ,
    अपने पति की दोस्त बनेगी,
    और "प्यार" से न घबराएगी|
    अच्छा सुधार किया है तुमने..!! जीते रहो!!

    आगे से तुम्हारी पोस्ट पर अपनी बोली में ही कमेन्ट करूँगा..:)

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  16. हास्य ज्यादा गंभीर बनाता है आदमी को ,हास्य में छिपी वेदना को पहचानने वाला मन चाहिए .अरे भई ! माना तुम्हारी अर्द्धांगनी हूँ ,पर आधा अंग ही

    निचोड़ो पूरा क्यों निचोड़ते हो पति लंकेश्वर .

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  17. अर्थ छिपाये प्रस्तुति, बहुत अच्छा

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