6 Sept 2012

बस यूँ ही-७


कजरारी अंखियों का काजल गालों तक बह आया है ,

बिंदी मस्तक से खिसक गयी ; या फिर उसने खिसकाया है ,

क्या बोलू कुछ समझ न आये ; अधर शून्य से बैठे हैं

कई बरस के बाद मेरा जब यार नजर फिर आया है ||
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