कभी मेरे घर में एक बहुत सुन्दर कांच का गुलदान रखा रहता था , एक रोज अंजाने ही वो मेरे हाथ से छूटा और टूट गया :(
इंसान की कहानी भी तो शायद ऐसी ही है -
तन एक सुन्दर कांच का बर्तन ,
कब छूटेगा , कब टूटेगा |
आसमान में उड़ते पंछी ,
साथ बुलाते हैं मुझको भी ,
दूर झुण्ड में बैठे तारे ,
पास बुलाते हैं मुझको भी ,
बोल दिया है उन्हें अभी से
,
बहुत जल्द ही मैं आऊंगा ,
इस दुनिया से ऊब गया मन ,
पास तेरे ही रह जाऊंगा ,
मन के वो सारे काम करूँगा ,
जो, जी कर भी न कर पाया ,
तुमसे वो सारी बात कहूँगा ,
जो, अपनों से भी न कह पाया
,
सर्दी की रातों में मिलकर ,
सूरज का अलाव जलाएंगे ,
कम्बल ओढ़े , घेरे उसको ,
गप्पें खूब लड़ाएंगे ,
छोर गगन तक तेज उडेंगे ,
पंछी जैसे पर फैलाये ,
सागर में गहरे जायेंगे ,
मछली जैसी प्यास जगाए ,
और ,
इन सब से जब थक जाऊंगा ,
शाम को ,
अम्बर के बरगद के नीचे ,
बहुत देर तन्हा बैठूँगा ,
बस राह तुम्हारी तकूंगा ,
बस याद तुम्हारी करूँगा ,
अब तो बस ,
उस दिन की खातिर जिन्दा हूँ ,
कि ;
कब छूटूंगा , कब टूटूंगा ||
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