२८ फरवरी २००२ :
"हर रोज की तरह उस सुबह भी मैंने क्रिकेट की ख़बरें पढ़ने के लिए ही अखबार उठाया लेकिन उस सुबह अखबार लाल खून से रंगा था , एक दिन पहले ही गोधरा जल उठा था और कौन जानता था कि उस आग की लपटें पूरे देश को जकड़ लेंगी और हमें इंसानियत और धर्म का नंगा, खूंखार और बदसूरत चेहरा देखने को मिलेगा | मैं बहुत छोटा था तब लेकिन उस दिन मैंने पहली बार जाना कि दंगा किसे कहते हैं |"
उसने भी तो किसी को खोया था , वो उसके पड़ोस में रहती थी , शायद कोई ८-९ साल की होगी बहुत जिद्दी और बहुत प्यारी | वो उसे भैया कहती थी और दिन भर उसके साथ शरारत किया करती -
टाफ़ी का वो आधा भरा डिब्बा
,
सोचता हूँ ,
किसी को दे दूँ ,
पर उम्मीद है
तुम आओगी और तुतलाकर टाफी
खिलाने की जिद करोगी |
हर रोज जब दफ्तर को निकलता
हूँ ,
सोचता हूँ ,
शायद तुम दरवाजे पर ही
मिलोगी ,
गाड़ी से मस्जिद तक चलने की
जिद करोगी |
मैं आज भी शाम को कहीं घूमने
नहीं जाता ,
बस मेज के उपर रखे लूडो को
देखता हूँ ,
और सोचता हूँ ,
शायद आज शाम तो तुम लूडो
खेलने की जिद करोगी |
आज भी मेरे सिरहाने पर ,
दो तकिये रखे हैं ,
सोचता हूँ ,
शायद आज रात तुम कहानियाँ
सुनने की जिद करोगी |
पर
फिर सोचता हूँ ,
अपने हाथों से ही तो दफनाया
था तुम्हें ,
फिर तुम कैसे आओगी , कैसे
कोई जिद करोगी |
काश तुझे उस सुबह मस्जिद पर
छोड़ा ही न होता ,
तो आज तुम जिन्दा होती ,
काश तुम्हारी एक जिद ना
मानी होती ,
तो आज तुम जिन्दा होती ,
काश राम और अल्लाह ही न
होते ,
तो आज तुम जिन्दा होती ,
काश इंसान में कुछ इंसानियत
भी होती ,
तो आज तुम जिन्दा होती |
खौफ का वो मंजर भूलने की
कोशिश तो करता हूँ ,
हर रोज ,
मगर ,
जिंदगी गुजारने के लिए उस
मस्जिद से गुजरना भी जरुरी है |
तेरी शरारतों भरी जिद भूलने
की कोशिश तो करता हूँ ,
हर रोज ,
मगर ,
कुछ देर मुस्कुराने के लिए
तुझे याद करना भी जरुरी है |
कहाँ होगी तुम ,
शायद न राम के पास न अल्लाह
के पास ,
तुम उस दुनिया में होगी ,
जहाँ प्यार ही अकेला मजहब
होगा ,
और वही असली जन्नत होगी |
अब तक तो काफी बड़ी हो गयी
होगी तुम ,
लेकिन जन्नत में भी तुम्हें
हिचकी आती होंगी ,
क्योंकि मैं आज भी तुम्हे
याद करता हूँ
मैं आज भी तेरी आवाज सुनता
हूँ ||
.
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.
This is one of the most heart-touching poems you ever wrote Akash. I hope it is read by those who spearhead these fanatic activities in the country & perhaps can never understand that people from separate faiths can also live in harmony..
ReplyDeletethanx ,
Deletei hope same , they not only read it but think about it that the love should be the basic of all religion not a riot in the name of Ram or Allah.
very imotional and based on reality......
ReplyDeleteyes,
Deletebut only the idea is based on reality.
भावनाओं का ज्वार है आपकी इस रचना में और दर्द भी, सामाजिक परिस्थितियों से सरोकार भी.
ReplyDeleteसम्पूर्ण रचना.
हार्दिक धन्यवाद |
Deleteदिल को छू गए हर लफ्ज़......
ReplyDeleteबेमानी हो जाती हैं सब बातें जब ज़िन्दगी किसी ऐसे मोड से ले जाते है......
आपकी लेखनी में रोशनाई नहीं जज़्बात भरे हैं....
अनु
मैंने पूरी कोशिश की है कि शब्दों की तुकबंदी से ज्यादा जज्बातों पर जोर दूँ |
Deleteआपका comment पढ़कर मुझे अपनी कोशिश काफी हद तक सफल होती दिखती है |
सादर धन्यवाद |
आकाश तुम्हारे कमेन्ट पढ़ कर अभिभूत हूँ....
Deleteप्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती :-)
मैंने भी यूँ ही हलके फुल्के अंदाज़ में दिल के ख्यालों को कागज़ पर उतारना शुरू किया...कब कवितायें बन गयीं खुद नहीं जानती.....
मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं....
लेखनी चलती रहे अनवरत....
just keep writing....
and keep reading good stuff.
may god bless you.
anu
I am not a big fan of free verse, but this one stands out!! My good wishes for the times to come!!
ReplyDeletethanx .
Deleteपहली बार देखा ब्लॉग ये बहुत मार्मिक लिखा है ...
ReplyDeleteब्लॉग पर आपके आगमन का धन्यवाद |
Deleteकहाँ होगी तुम ,
ReplyDeleteशायद न राम के पास न अल्लाह के पास ,
तुम उस दुनिया में होगी ,
जहाँ प्यार ही अकेला मजहब होगा....
Isiliye Main Bachchan ji ka Madhushala ka sabse bada fan hoon..... aur aam jan se pariwar walon se bhi gujarish rakhta hoon.....
Mere saw ke peeche chale walon yaad jara rakhna
Ram naam hai satya na kahna, kahna sachhi Madhushala....
Good Job Akash
प्रभात कुमार जी ,
Deleteआपसे तारीफ़ सुनकर अच्छा लगा |
बच्चन जी का मैं भी बहुत बड़ा प्रशंशक हूँ , मधुशाला की ही एक पंक्ति है -
"बैर कराते मंदिर - मस्जिद ,
मेल कराती मधुशाला |"
आभार
बहुत मार्मिक लिखा है
ReplyDeleteतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार...!
बहुत ही खूबसूरत और गहरे एहसास और इतने संगीन मुद्दे को जितनी मासूमियत के साथ तुमने बयान किया है, वो दिल को कुरेदकर रख देता है.. और जैसी की मेरी आदत है:
ReplyDelete१. टाफ़ी का वो आधा भरा डिब्बा - आधा भरा.. आधा डिब्बा टॉफी.
२. पर फिर सोचता हूँ - पर या फिर... दोनों साथ-साथ नहीं.
३. काश तुझे उस सुबह... - तुम्हें लिखना चाहिए, क्योंकि बाद में हर जगह, तुम, तुम्हें लिखा है, तू या तुझे नहीं.
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इन सबके अलावा भी कविता ने दिल को छुआ और यही सफलता है इस कविता की कि यह अपना मेसेज अभिव्यक्त करने में कामयाब हुई!! बधाई, वत्स!!