11 Feb 2013

फासला


क्या फरक कि मैं चला या तू चला है , 
बात है कि फासला कुछ कम हुआ है | 


एक अरसे से नहीं रूठी है मुझसे ,
मुझको किस्मत से फ़कत इतना गिला है |

टूटने वाला हूँ मैं कुछ देर में , 
ये मेरी अपनी अकड़ का ही सिला है | 

तू भी इक दिन फेर लेगा मुंह यकीनन , 
खून में तेरे वही पानी मिला है | 

आईने से मुंह चुराते हो भला क्यूँ , 
एक तेरा ही तो मुंह दूधों धुला है | 

आज नाजायज है अपने ही शहर में , 
वो गुनाह जो सबकी गोदी में पला है | 

दफ्न कर डाले हैं सबने फ़र्ज अपने , 
दौर ये अंगुली उठाने का चला है | 

एक दिन बदलेगी ये तस्वीर, लेकिन 
बोलने से क्या कभी पर्वत हिला है ?
.
@!</\$}{
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14 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार 12/213 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है

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  2. sundar baat ...sundar rachna ....
    shubhkamnayen ...

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  3. अरे वाह रे मेरे गजल गायक......बहुत ही सुंदर.......कथ्य व फार्मेट दोषरहित.....यूं ही लिखकर दिल को छूते रहिये........

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  4. दफ्न कर डाले हैं सबने फ़र्ज अपने ,
    दौर ये अंगुली उठाने का चला है |

    Bahut Umda

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  5. सिला चुकाने का रिवाज़ यूँ बदला
    तुम भी बदले,मैं भी बदला

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  6. बहुत सुन्दर! इस बेहतरीन रचना के लिए आपका अभिनन्दन!
    http://voice-brijesh.blogspot.com

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  7. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  8. वाह बहुत खूब आकाश बाबू ... लगे रहो !


    बुलेटिन 'सलिल' रखिए, बिन 'सलिल' सब सून आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  9. दफ्न कर डाले हैं सबने फ़र्ज अपने ,
    दौर ये अंगुली उठाने का चला है |

    वाह /अभिनव भाव /भव्य प्रस्तुति /बेमिसाल !!!

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  10. दफ्न कर डाले हैं सबने फ़र्ज अपने ,
    दौर ये अंगुली उठाने का चला है |

    बिलकुल सच कह रहे हैं आप ! आजकल यही दौर चल रहा है ! बेहद संवेदनशील प्रस्तुति !

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  11. वैसे जब सलिल दादा आयेंगे तो बेहतर समझायेंगे तुम्हें ,मगर फिर भी हमारी समझ से इतना करो कि पहले शेर में नियम के हिसाब से
    क्या फरक कि मैं चला या तू चला है ,
    बात है कि फासला कुछ कम "हुआ" है | यहाँ ला से तुक मिलाता शब्द लगाएं..
    भाव बहुत सुन्दर हैं....मीटर भी दादा से समझना.
    :-)
    सस्नेह
    अनु

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  12. अति सुन्दर ............

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  13. अरे वाह, बड़ी प्यारी गज़ल है. खासकर ये शेर बहुत अच्छा लगा-
    टूटने वाला हूँ मैं कुछ देर में ,
    ये मेरी अपनी अकड़ का ही सिला है |

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  14. Lafj aapke hisse ki sahi...Kahani ye sabki hai...
    Lajawab...

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