आज उनका दिन है , जिनके दिलों में ईश्वर बसता है , जिनकी मुस्कान के जरिये अल्लाह हम पर अपना करम बरसाता है |
लेकिन एक कड़वा सच ये भी है -
झोपड़े के नीचे मुस्कुराता ,
एक बेचारा बचपन ,
ना जाने कब बीत गया ,
उसका वो प्यारा बचपन ||
कुछ के घर में माँ बाप नहीं ,
कुछ घर छोड़ कर भागे हैं ,
कुछ बहकावे में निकल लिए ,
कुछ पैदा हुए अभागे हैं ,
चाहे जैसे भी आये हों ,
सबकी किस्मत कुछ मिलती है ,
न कागज की वो नावें हैं ,
न झूलों पर बैठा बचपन ||
एक बेचारा बचपन ,
ना जाने कब बीत गया ,
उसका वो प्यारा बचपन ||
कुछ के घर में माँ बाप नहीं ,
कुछ घर छोड़ कर भागे हैं ,
कुछ बहकावे में निकल लिए ,
कुछ पैदा हुए अभागे हैं ,
चाहे जैसे भी आये हों ,
सबकी किस्मत कुछ मिलती है ,
न कागज की वो नावें हैं ,
न झूलों पर बैठा बचपन ||
इनके हमउम्र सभी बच्चे ,

इनके तो खेल दुकानों में ,
सुबह से ही सज जाते हैं ,
जब बाकी सब गिनती सिखने की ,
घर में कोशिश करते हैं ,
ये बिना सीखे गिनती ; धंधे का
खूब हिसाब लगाते हैं ,
जब बाकी सब खाना खाते हैं ,
माँ के हाथों से इठलाकर ,
ये पिचके हुए कटोरे में ,
कच्चे से चावल खाते हैं ,
जब बाकी सब माँ के सिरहाने ,
लोरी सुनकर सोते हैं ,
ये फटी हुई चादर को ओढ़े ,
सर्दी की रात बिताते हैं ,
जीवन केवल बीत रहा है ,
अंधकार में लिपटा कल ,
सोचो तो कैसा होता ,
जो होता यही हमारा बचपन ||
जब , बच्चों की मासूम निगाहें ,
जन्नत की सैर कराती हैं ,
तो क्यूँ कुछ बच्चों की ऑंखें फिर ,
सूखी गंगा बन जाती हैं ,
कुछ तो उनके दिल में है ,
उनके भी कुछ सपने हैं ,
उनकी भी कोई जरुरत है ,
कुछ हक उनके भी अपने हैं ,
दे दो एक मुस्कान उन्हें ,
कुछ सपने और एक सुन्दर कल ,
उनको फिर से लौटा दो ,
उनका वो प्यारा बचपन ||
.
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लो जी फिर आ गया 'बाल दिवस' - ब्लॉग बुलेटिन बाल दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं स्वीकार करें ... आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता है आकाश...
ReplyDeleteकोमल भावनाओं की बहुत अच्छी अभिव्यक्ति की है...
विचारणीय रचना..
सस्नेह
अनु
कोमल भाव लिए संवेदनशील अभिव्यक्ति...
ReplyDelete"कुछ सपने और एक सुन्दर कल,
ReplyDeleteउनको फिर से लौटा दो,
उनका वो प्यारा बचपन ||"
बचपन का एक रंग यह भी है...
मार्मिक और सोचने पर विवश करती कविता
ReplyDeleteबाल दिवस के अवसर पर जेतना बढ़िया बात तुम अपना कबिता में लिखे हो, उसको पढकर एही कहने का मन करता है कि ई सम्बेदना का हिमालय है..!! बहुत ही अच्छा!
ReplyDeleteबहुत सम्बेदंशील रचना . वास्तविकता भी है .
ReplyDeleteमेरी नई रचना "हम बच्चे भारत के " http://kpk-vichar.blogspot.in
आपकी पोस्ट आज चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteअत्यंत कोमल भाव समेटे सुन्दर कब्यांजलि....हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteबच्चों को जो सदा प्यार से,
ReplyDeleteहँसकर गले लगाता था।
इसीलिए तो लाल जवाहर,
चाचा जी कहलाता था।
अपने जन्मदिवस को जिसने,
बालकदिवस बनाया।
उसका जन्मदिवस भारत में
बाल दिवस कहलाया।।
बहुत बढ़िया । सुन्दर ।
ReplyDeleteஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
.......सुन्दर रचना...बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में
ReplyDeleteati sundar aur dil ko jhagjhorti sacchai ko bayan karti kavita......
ReplyDeleteIshwar ke khel bhi nirale hain.
काश कविता में व्यक्त की चाहत पूरी हो सकती।
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