कदम मासूम रहते जो तू हमारे साथ चल पाती ,
न जख्म यूँ पकता ,न तो नासूर यूँ बनते ,
गर् जख्म होती तू , तू ही मरहम लगा पाती !!
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मैं रात को छत पे सुकूं से नींद भर सोता ,
हर सुबह तू गर् प्यार से मुझको जगा जाती !!
तेरी नजरो की रहमत गर् मुझे इक बार मिल जाती !!
तेरी साँसों की खुशबू जो मेरी साँसों में बस जाती !!
गली के मोड़ पर मुड़ने से पहले तू भी मुड़ जाती !!
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@!</\$}{
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हर सुबह तू गर् प्यार से मुझको जगा जाती !!
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रहम मुझ पर भी होता उस खुदा का टूट कर हरदम ,
तेरी नजरो की रहमत गर् मुझे इक बार मिल जाती !!
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महकता सा मुझे महसूस होता कुदरत का हर जर्रा ,
तेरी साँसों की खुशबू जो मेरी साँसों में बस जाती !!
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मैं राह पर मुड़ – मुड़ के तुझको देखता था “काश...” ,
गली के मोड़ पर मुड़ने से पहले तू भी मुड़ जाती !!
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@!</\$}{
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ह्म्म्म ! तो ये भी ....हा हा हा ..मैं तो हँसूंगी ही ...रोको भला...
ReplyDelete:-) :-)
Deleteकाश ...
ReplyDeleteएक खबर जो शायद खबर न बनी - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
कोशिश कामयाब होती है ... अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteवैसे ये तो पता है न जिस काम के लिये मना करो सब वही करते हैं :)
kisne kaha ki aap ......likhte rahiye achha likhate hain aap :)
ReplyDeleteWell written!! Good work!!
ReplyDeleteNow please disclose for whom have you written these lines?? :P
:))
ReplyDeleteकम उम्र की सोच ...
ReplyDeleteअब इस रचना को क्या कहूँ.. गज़ल जैसी लग रही है, लेकिन गज़ल का एक अपना विन्यास और शिल्प होता है, उसके पैमाने से ये गज़ल नहीं है.. हाँ अगर इसे मैं गीत कहूँ तो बहुत अच्छा रहेगा.. सचमुच रूमानी गीत है.. लेकिन फिर से तुम्हें लय पर मिहनत करना होगा..
ReplyDeleteइस गीत में बयान किये गए भाव बहुत ही सुन्दर हैं और इस नज़रिए से देखा जाए तो मैं कह सकता हूँ कि इसमें नयापन है.. लेकिन फिर से कई मिसरे/पंक्तियाँ व्याख्या की माँग करती हैं.. जैसे - "कदम मासूम रहते जो तू हमारे साथ चल पाती"- यहाँ पर कदम के मासूम होने का क्या मतलब है..?
खैर तुम भी कहोगे कि बाऊ जी हमेशा ऐसी ही बातें करते हैं.. मगर क्या करूँ, जहाँ संभावनाएं दिखती हैं वहाँ लगता है कि बस ज़रा सा संभाल लूँ.. तभी तो कल रहूँ ना रहूँ.. मगर गर्व करूँ, तुमपर!!
आकाश सलिल दा की सलाह को हमारी भी सलाह समझो.....ये गज़ल लिखना इश्क करने से भी मुश्किल है :-)
Deleteनज़्म लिखो ....छंद मुक्त गीत लिखो....जो दिल में आये वैसा लिखो..और लिखते रहो क्या पता शायर ही बन जाओ...एहसास बहुत खूबसूरत है.
सस्नेह
अनु
Very appealing and impressive creation.
ReplyDeleteThe post is very informative. It is a pleasure reading it.
ReplyDeleteअगर आप इसको कोशिश का नाम दे रहे हैं तो मेहनत किसे कहेंगे.... :)
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