खुशी से भरा एक जहाँ आओ ढूंढें ,
उम्मीदों भरा आसमां आओ ढूंढें |
जिसका महल खून से न रंगा हो ,
ऐसे खुदा का निशां आओ ढूंढें |
मुहब्बत हमारी जो खो सी गयी है ,
उसे अपने ही दरमियाँ आओ ढूंढें |
कागज के फूलों को कब तक सजाएं ,
गुलों से सजा गुलिस्तां आओ ढूंढें |
आँखों का पानी इधर ही गिरा था ,
शहर के शरीफों यहाँ आओ ढूंढें ||
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उम्दा कहा है..
ReplyDeleteकहाँ थे पुत्र इतने दिनों!! बहुत अच्छी कविता है.. काश हर कोई ऐसा ही सोचे तो यह दुनिया उतनी बदसूरत न रहे जितनी है!! जीते रहो!!
ReplyDeleteआकाश बाबू सुंदर।
ReplyDeleteपहली बार पढ़ा आपको ...और सच कहूं आगे और भी पढ़ना चाहूंगी ..... शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत लिखा है आपने |
ReplyDeleteनई पोस्ट तुम
बहुत अच्छी सोच है आकाश .... आकाश तक पहुँचाने वाली .......
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना ...
ReplyDelete.....bahut hi umda rachna ....welcome back bhai
ReplyDeleteआँखों का पानी इधर ही गिरा था ,
ReplyDeleteशहर के शरीफों यहाँ आओ ढूंढें ||
gazab likhte ho betu.. khush raho. likhte raho.
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