4 Oct 2012

सपनों का सौदागर


साब ! एक रुपिया देओ ना साब , कल से कुछौ नई खावा ...,
      रावतपुर क्रोसिंग , शायद कानपुर शहर की व्यस्ततम क्रोसिंग या उनमें से एक | जब भी किसी रेल को गुजारने के लिए इसके फाटक बंद होते हैं , उस के दोनों तरफ चंद सेकेंडों में ही सैकड़ों मुसाफिरों का हुजूम जमा हो जाता है और उन में से हर एक को इतनी जल्दी होती है मानो अगले १० मिनट में उनकी प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग हो | फाटक पर रुकना तो महज एक मजबूरी है | यकीन ना हो तो एक बार फाटक खोल कर देखिये , फिर रेल क्या रेल मंत्रालय वाले भी इन्हें नहीं रोक पाएंगे |
      इसी मजबूरी में आज मैं भी फंस गया | रोज तो बाइक तिरछी कर के निकल लेता था लेकिन आज तो फाटक तक ही नहीं पहुँच पाया | फाटक के किनारे फंसा हुआ बेचारा मजबूर आदमी कर भी क्या सकता है ! वो तो बस नजर घुमाकर आंखों की कसरत कर सकता है या भगवान से रेल के जल्दी आने की प्रार्थना कर सकता है ( जबकि उसे मालूम है कि भगवान कोई रेल का ड्राईवर नहीं है ) , वही मैं भी कर रहा था .| मेरा बस चले तो मैं उन चंद सेकेंडों के लिए ट्रेन में हवाई जहाज का इंजन लगा दूं , उफ़, कितनी धीमे चलाते हैं ये लोग |
      लेकिन इसी भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो भगवान से हर सेकेंड यही प्रार्थना करते हैं कि हे भोलेनाथ ! ये फाटक जितनी देर मुमकिन हो , अभी और बंद रहे (हालाँकि ये लोग भी जानते हैं कि भोलेनाथ फाटक खोलने और बंद करने नहीं आते )| ये कुछ लोग उस फाटक पर अपना धंधा चलाने वाले या इज्जत से कहें तो बिजनेस करने वाले भिखारी होते हैं | बंद फाटक इन के लिए किसी त्यौहारी बम्पर धमाका से कम नहीं | तभी तो ये चाहते हैं कि फाटक यूँ ही बंद रहे और इन का बिजनेस शेयर मार्केट को भी हिला दे |
        इस वक्त भी एक ५-६ साल का छोटा बच्चा हाथ में कटोरा लिए और उस में एक तेल चुपड़ी हुई लोहे कि पत्ती डाले हुए , जिसे वो शनि देव बता रहा था, एक आदमी की जेब हल्की कराने पर लगा हुआ था, एक लगभग उसी कि उम्र की लड़की टैम्पो से वसूली कर रही थी और एक अधेड़ नशे कि हालत में किसी साल भर के बच्चे को अपनी गोद में दबाये रेल की पटरी से कुछ दूरी पर बैठा था और शायद अपने आप से ही कुछ बड़बड़ा रहा था | मैं दावा तो नहीं कर सकता लेकिन संभवतः वो अधेड़ और उस की गोद में बैठा वो बच्चा शायद दोनों बाप-बेटे रहे होंगे|
        लेकिन असली मुसीबत तो मेरे सामने खड़ी थी .| एक करीब १०-११ साल का लड़का अपनी दायीं टांग को हवा में उठाये , बैसाखी का सहारा लिए ठीक मेरे बगल वाले सज्जन के पास खड़ा था – “साब ! एक रुपिया देओ ना साब , कल से कुछौ नई खावा ...” उस लड़के ने इस छोटी सी उम्र में कमाए हुए अपने तमाम अनुभव को इस एक वाक्य में झोंक दिया | दयनीयता उस के चेहरे से साफ़ टपक रही थी | धूप में रहते हुए उस का रंग सुर्ख काला हो चुका था | उस की दायीं टांग पर , जो संभवतः टूटी थी और जिस को वो हवा में उठाये था, घुटने के नीचे एक बड़ा सा घाव था जिसमें मवाद/पस भरा हुआ था और मक्खियों के एक झुण्ड ने उसी के ऊपर अपना बसेरा बना लिया था |
          सामने वाले से कोई जवाब ना पाते हुए उसने एक बार फिर याचना करना उचित समझा- “साब देओ ना साब , भगवान करे तुम जल्दी साईकिल की जगह मोटरसाईकिल पे घूमौ |” , सच कहा जाता है कि बिजनेस में हर बार कुछ अलग , कुछ क्रिएटिव करते रहना चाहिए | लड़के ने तो जैसे उस आदमी की दुःखती रग पे हाथ रख दिया हो | झट उसका हाथ जेब की तरफ लपका और जेब से एक सिक्का लेकर निकला , पता नहीं कितने का लेकिन वो सिक्का लड़के को थमाते हुए उसकी आँखों की चमक साफ़ देखी जा सकती थी, मानो एक सिक्के के बदले में उसने मोटरसाईकिल खरीद ली हो |
         लेकिन ये मेरे लिए साफ़ संकेत था कि बेटा अगला हमला तेरी जेब पर ही होने वाला है | हालाँकि १ रु. देने में गरीबी ना आ जाती लेकिन फिर भी मुझे भीख देना कतई पसंद नहीं क्योंकि मुझे लगता है कि इंसान को मेहनत कर के पेट पालना चाहिए | लेकिन शायद मुझे इनके बिजनेस में लगने वाली मेहनत का अंदाजा नहीं था |
         “एक रुपिया देओ ना साब , कल से कुछौ नई खावा ...”, वही पुरानी लाइन |
         मैंने फैसला कर लिया था कि इस को एक पैसा भी नहीं दूँगा | उस को अनदेखा करने के लिए मैंने अपने कंधे पर टंगे कोचिंग बैग को सही करना शुरू कर दिया |
         लेकिन महज ११ साल कि उम्र में उस बच्चे ने शायद काफी अनुभव हासिल कर लिया था | पास में ही कोचिंग मंडी का होना मेरे कंधे पर टंगे उस कोचिंग बैग का होना , शायद इतना संकेत उस के लिए काफी था | तुरंत उसने अपना अगला पासा फेंका - “साब भगवान करे तुम्हरा आई.टी.आई. में हुई जाये |”, लेकिन यही पर वो मात खा गया | किसी आई.आई.टी. की तैयारी करने वाले बंदे को कभी ये दुआ देकर देखिये , जो उस वक्त मुझे उसने दी थी, फिर देखिये कैसे उसके तन-बदन में आग लग जाती है |
         “अबे ए ! क्या फिजूल बक रहे हो बे | पता नहीं है लेकिन बके जा रहे हो | बेटा ! ये भीख-वीख मांगना छोडकर पढाई-लिखाई क्यों नहीं करते ?”, मैंने 'आई.टी.आई.' का सारा गुस्सा उस पर निकलते हुए बेहद तिरस्कारपूर्ण लहजे में उस से सवाल किया |
                    “साब कोई के ३ दिन तक कुछौ खावे के न देओ , फिर ३ दिन बाद उह्के आगे ४ रोटी और १ किताब रखि के देखो , अपये-आप पता लगि जाई , का जादा जरूरी | , इस से पहले कि मैं उसे कोई और भाषण दे पाता , उस छोटे से बच्चे के उस सटीक जवाब ने मुझे निरुत्तर कर दिया |
          कुछ पल तक तो मैं उसे यूँ ही खड़ा देखता रहा | मेरे हाथों ने खुद-ब-खुद मेरी जेब में से एक सिक्का निकालकर उसे दे दे दिया |
          “बहुत जल्दी आई.टी.आई. में पास हुई जैहो ”, बोलता हुआ वो आगे बढ़ गया | लेकिन इस बार उसके 'आई.टी.आई.' से मुझे गुस्सा नहीं आया , बल्कि मैं तो अब भी उसकी बात का जवाब तलाशने कि कोशिश कर रहा था |
          क्यों उसने मुझसे ३ दिन भूखे रहने कि बात कि थी | आखिर वो भी तो भीख किसी ना किसी मजबूरी में ही मांगता होगा | आदमी दिन भर में जितने का गुटखा खा के थूक देता है, उतना पैसा अगर इन गरीबों को दे देगा तो इनकी कितनी मदद हो जायेगी | बच्चों को तो देश का भविष्य कहते हैं लेकिन आज मैंने देश के उसी भविष्य को हाथ में कटोरा पकडे देखा |
          “साब ! एक रुपिया देओ ना साब , कल से कुछौ नई खावा ...”, एक बार फिर वही आवाज मेरे कानो में पड़ी | अपनी बैसाखी को खडखडाता हुआ वो अब मेरे बगल वाली मोटरसाइकिल के पास पहुँच चुका था | उसका अगला निशाना थे एक २०-२२ साल का लड़का और उसके पीछे बैठी लगभग उसी के उम्र की एक लड़की |
          “नहीं है , चल आगे बढ़ |”, मोटरसाइकिल पर सवार उस लड़के ने बेरुखी से जवाब दिया|
          लेकिन वो बिजनेसमैन ही क्या जो अपने क्लाइंट को इतनी आसानी से जाने दे |
                     “मेमसाब ! देओ ना | भगवान करे तुम दुइनो की जोड़ी हमेसा बनी रहे |, इस बार उस ने लड़की को निशाना बनाना ठीक समझा |
           एक बार फिर उसका तीर सटीक निशाने पर लगा | कोई लड़का ये कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि जिस भिखारी को उस ने भगा दिया , उसकी गर्लफ्रैंड उसे पैसे दे दे | अजीब सा मुंह बनाते हुए , उसे एक सिक्का पकडाते हुए बोला ,”चल ले , अब भाग यहाँ से |”
           उस भिखारी ने मुझे आज एक चीज तो सिखा दी थी कि वो भीख नहीं मांगता , वो तो उस क्रोसिंग पर अपना व्यापार करता है | वो लोगो को १ रुपये में सपने बेचता है ; साईकिल वाले आदमी को मोटरसाइकिल का सपना , कोचिंग वाले को “आई.टी.आई.” का सपना और लड़की वाले को मजबूत रिश्ते का सपना | लेकिन अफ़सोस सपने बेचने वाले उस व्यापारी की आँखों में खुद के लिए शायद कोई सपना नहीं है |
           मैं अपने ख्यालों कि दुनिया में बस खो ही पाया था कि लोगों कि चीख ने मुझे वापस खींच लिया | मेरे आस-पास के ज्यादातर लोग रेलवे ट्रैक की तरफ इशारा कर रहे थे और बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे थे | डर उनके चेहरों से साफ़ पढ़ा जा सकता था | पटरियों पर रेल बिना रुके आगे बढ़ी चली आ रही थी | लेकिन तभी मेरी नजर उन्ही पटरियों के बीच में बैठे उस बच्चे पर पड़ी जो अभी कुछ देर पहले नशे में धुत उस अधेड़ कि गोद में बैठा खेल रहा था| उस बच्चे को तो शायद इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं होगा कि मौत कुछ ही मीटर की दूरी से उसकी तरफ दौड़ती चली आ रही थी | चाहे मेरे एक तरफ खड़े साईकिल वाले भाईसाब हों या दूसरी तरफ खड़ा प्रेमी जोड़ा या फिर फाटक के दोनों तरफ खड़े बाकी के लोग , सभी एक-दूसरे की तरफ देखकर बचाओ-बचाओ चिल्लाने के आलावा और कुछ करने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे | उन्ही में से एक मैं और एक वो ११ साल का लंगड़ा भिखारी बच्चा भी था |
           लेकिन अचानक मेरी आंख खुली की खुली रह गयी | वो लंगड़ा भिखारी अपनी जगह पर नहीं था | वहाँ थी तो सिर्फ उसकी लकड़ी की बैसाखी , जो जमीन पर पड़ी थी और वो लड़का जो कुछ समय पहले अपनी एक टांग को हवा में उठाकर लोगों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहा था , वही अब पूरी तेजी के साथ लोगो की भीड़ को चीरता हुआ  रेल की उन पटरियों की तरफ दौड़ा जा रहा था | लेकिन शायद इतना काफी नहीं था | उस क्रोसिंग के इंचार्ज ने अगर रेल को रुकने का संकेत दिया भी होता तो भी अब रेल का बच्चे की जान लिए बिना रुकना लगभग असंभव ही था|
           रेल लगभग क्रोसिंग पर आ चुकी थी | उसके होर्न की आवाज के नीचे सभी के बचाओ की गुहार एकदम दब सी गयी थी | नशे की हालत में बैठा वो आदमी अब भी खुद में ही कुछ बडबडा रहा था | रेल कि पटरियों के बीच बैठा वो मासूम अपनी ही आगामी मौत से अजान अब भी बेफिक्र बैठा था और उस मासूम कि आखिरी उम्मीद वो लंगड़ा भिखारी जिसकी टांग अभी कोई १० सेकेंड पहले ही ठीक हुई थी , बिना किसी खौफ के पूरी ताकत से दौड़ता हुआ फाटक तक पहुँच चुका था | लोग और तेज चिल्लाने लगे थे लेकिन उनके चेहरे से एक मासूम कि अकारण होने वाली मौत का भय साफ देखा जा सकता था, या फिर शायद दो की |
           लोगों का सारा ध्यान ११ साल के उस लंगड़े भिखारी की तरफ था, जो एक बच्चे को बचाने के लिए खौफ कि सारी सीमाओं को लांघकर ठीक मौत की तरफ ही दौड रहा था | उसने झटके से दौडकर फाटक पार किया | पटरियों पर बैठा वो नन्हा बच्चा उस से केवल ३ कदम की दूरी पर होगा और ट्रेन भी उस से महज चंद मीटर की दूरी पर ही थी| दोनों एक-दूसरे की तेजी की परीक्षा लेने को तैयार थे |
           अचानक सारी आवाजें शांत सी हो गयीं | सभी के मुंह अपने सबसे बड़े आकार में खुले हुए थे | आज होने वाली दोनों मौतों का भय वहाँ मौजूद हर शख्स के चेहरे से साफ़ देखा जा सकता था सिवाय उन दोनों के चेहरे पर , जो खुद मरने जा रहे थे - एक तो साल भर का नादान बच्चा और दूसरा १०-११ साल का वो बहादुर – लंगड़ा – सपने बेचने वाला व्यापारी |
             उस नन्ही सी जान के अंदर आज पता नहीं किस शूरवीर की आत्मा आ गयी थी | उसने अपने शरीर को दायीं तरफ झुकाते हुए अपने दायें हाथ की हथेली को कुछ झपटने के लिए तैयार किया | ट्रेन भी अपना निवाला खाने पहुच चुकी थी लेकिन उसने अपने हाथ में उस नन्हे से बच्चे कि गर्दन को झटके से फंसाते हुए अपनी पूरी ताकत से एक छलांग मारी और रेल के मुह से उसका निवाला छीन लिया |
             आखिर जीत साहस कि हुई | सभी लोगों के चेहरे का भय आश्चर्य में बदल चुका था| नशे में धुत वो आदमी अब भी खुद से ही कुछ बडबडा रहा था | लोग उस बच्चे की बहादुरी की तारीफ करने लगे | तभी उनमे से एक शक्की लहजे में बोला-“लेकिन वो तो लंगड़ा था ना ?”
             “अरे साब ये तो इन लोगों के हम शरीफों को ठगने के तरीके होते हैं , हमें उल्लू बनाता था वो |”, दूसरे ने कुछ शिकायती किस्म का जवाब दिया |
              मेरे मन में भी उधेड़बुन चल रही थी | एक बच्चे को बचाने के चक्कर में आज उसने अपनी रोजी-रोटी को लात मार दी , अब कोई भी उस पर भरोसा नहीं करेगा , भले ही वो कितने भी दिन से भूखा हो | क्या जरूरत थी उसे बैसाखी छोडकर भागने की ? यही बैसाखी ही तो उसकी रोजी का मुख्य जरिया थी, आज वो राज खुल गया | लेकिन शायद इसी को इंसानियत कहते हैं , जब एक इंसान किसी दूसरे इंसान के लिए अपना सब कुछ बिना सोचे समझे दांव पर लगा देता है और शायद इसी को बहादुरी कहते हैं जब एक इंसान की आँखों में अपनी मौत का खौफ एक बार भी नहीं झलकता |
               और सबसे बड़ी बात कि इंसानियत और बहादुरी किसी विद्यालय, कोचिंग या सभ्य समाज में नहीं सिखाई जाती |ये तो देश के उस भविष्य के दिल में भी हो सकती हैं जो क्रोसिंग पर हाथ में कटोरा लिए खड़ा होता है |
               रेलगाड़ी अपनी पूरी गति के साथ क्रोसिंग को पार कर रही थी | उसके पहियों की खट-खट की आवाज अब साफ़ सुनाई दे रही थी | गुजरती हुई रेलगाड़ी के डिब्बों के बीच की खाली जगह से उस व्यापारी की काली-काली शक्ल को धुंधला सा देखा जा सकता था , जिसकी बहादुरी को शायद कोई याद भी नहीं रखेगा | वो नन्हा व्यापारी भी शायद इस बात को जानता होगा और उस वक्त शायद शहर की किसी दूसरी क्रोसिंग के बारे में सोच रहा होगा जहां कल से वो फिर हाथ में कटोरा लेकर सपने बेचेगा |
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28 comments:

  1. बहुत ही भावुकता भरी रचना |
    खासकर-"वो लोगो को १ रुपये में सपने बेचता है ; साईकिल वाले आदमी को मोटरसाइकिल का सपना , कोचिंग वाले को “आई.टी.आई.” का सपना और लड़की वाले को मजबूत रिश्ते का सपना | लेकिन अफ़सोस सपने बेचने वाले उस व्यापारी की आँखों में खुद के लिए शायद कोई सपना नहीं है"
    यह एक सच्चाई है जिससे हमारा रोज वास्ता होता है लेकिन सबको अपनी पड़ी है |कुछ तो इसे सही में व्यापार ही मानते हैं,अब बहुत कम ही मिलते हैं जो आपके इस रचना वाले लड़के के जैसा हों|

    सादर |

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    1. मैंने आँखों की पलकों पर ,
      उम्मीद सजा राखी है ,
      क्यूंकि ,
      बचपन में किसी को कहते सुना था ,
      उम्मीद ने दुनिया टिका राखी है |
      -आकाश

      बिल्कुल सही कहा आपने , ये एक सच्चाई है |
      पढ़ने के लिए धन्यवाद |

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  2. बहुत ही भावनात्मक अभिव्यक्ति

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  3. बहुत ही बढ़िया......दिल को झकझोरती और सच्चाई को परोसती सुन्दर रचना ...| ऐसा अक्सर हम लोगो के साथ रोजमर्रा की जिंदगी में घटित होता रहता हैं.....उसका सजीव चित्रण प्रस्तुत किया आपने....|
    हमारे समाज में हर तरह का आदमी हैं.....जो किसी न किसी सपने ही दिखा रहा हैं | वोही यह गरीब बच्चे भी कर रहे हैं....और हम कि हकीकत जानते हुए भी उन सामनो खोकर भावनात्मक हो जाते हैं....|
    शेष आपका लेख अच्छा लगा....
    आगे भी लिखते रहिएगा ....
    रीतेश ...आगरा

    http://safarhainsuhana.blogspot.in/

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  4. धन्यवाद रितेश जी ,
    जरुर लिखता रहूँगा ,
    एक बहुत सम्माननीय शख्सियत ने मुझ से कहा भी था - "लेखनी चलती रहे अनवरत" |
    .
    सादर
    आकाश |

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  5. आकाश बाबू!
    आज तो आपने हमको अमिताभ बच्चन बना दिया.. अब हम कहाँ समभालेंगे ई प्यार मोहब्बत जो आप हमको दिए हैं..
    ई भिखारियों का अम्नोविज्ञान श्रीमद्भागवत गीता से उपजा है.. इंसान अपने अहंकार की तुष्टि के लिए जीता है और वही है उन भिखारियों का ट्रेड सीक्रेट.. कभी सड़क पर बिलकुल अकेले आप हों और वो भिखारी तो वो बिलकुल नहीं मांगेगा भीख आपसे.. उसे पता है देने वाला एक रुपये देकर दानवीर कर्ण कहलाना चाहता है अपने आस-पास खाड़ी भीड़ की नजर में..
    मगर आपका लेखान कमाल है.. आई.टी.आई. सुनकर तो हमारे मुँह से चाय बाहर गिर गयी..
    जीते रहिये और मन से लिखिए!!हमारा आशीष!!

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    1. सर ,
      सबसे पहले तो आपका धन्यवाद कि आपने हम जैसे नौसिखिए की रचनाओं को कुछ समय दिया |
      १.) जो प्यार आपको दिया जा रहा है , आप उससे कहीं ज्यादा के योग्य हैं |
      २.) गीता और भिखारी वाली बात आपने १६ आना सच बोली साब |
      ३.) आपकी चाय मुँह से बाहर गिर गयी मतलब हमारा लिखना सफल हो गया और ये आई.टी.आई. वाला किस्सा तो हमारे ऊपर ही घटा है | :)

      सादर

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  6. बहुत अच्छा संस्मरण।

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    1. अनूप जी ,
      आपने 'संस्मरण' कहा , बहुत खुशी हुई , क्यूंकि यकीन मानिये ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है , जिसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है | :)

      सादर
      -आकाश

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  7. लगता नहीं कि काल्पनिक है ....घटता है ऐसा/घट सकता है ऐसा...
    एक निवेदन है --- ब्लॉग का नाम भी हिन्दी में ही कर दें ...
    वाकई अच्छा लिखा है...

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    1. धन्यवाद अर्चना जी , अगर आपको ये रचना काल्पनिक नहीं लगी तो मेरा लिखना सार्थक हो गया |

      सादर

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  8. अनूप जी और अर्चना दी की तरह मुझे भी संस्मरण सा लगा....
    अच्छी कहानी की यही तो निशानी है कि वो महज एक कथा या कल्पना न लग एक आपबीती लगे....तभी तो दिल को छुएगी....
    लिखते रहो आकाश...कल्पना की कोई सीमा नहीं.....

    अनु

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    1. धन्यवाद दीदी ,
      बहुत बड़ा प्रोत्साहन दिया है आप लोगों ने , मैं कहानियाँ लिखना बंद कर चुका था लेकिन अब जरुर लिखूंगा

      सादर

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  9. बहुत बेतरतीब से शब्दों से भाव अभिव्यक्ति !

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  10. ज़बरदस्त कहानी .... मुझे भी संस्मरण ही लग रहा था ... पर आपने स्पष्ट किया कि यह पूरी तरह काल्पनिक है .... बहुत बढ़िया .... ऐसे लोगों में ही शायद इंसानियत बाकी है ।

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    1. संगीता जी ,
      जब भी कोई इसे संस्मरण बताता है तो सचमुच बहुत खुशी होती है |
      हार्दिक धन्यवाद |

      सादर
      -आकाश

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  11. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन....बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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    1. धन्यवाद मदन जी ,
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है |

      सादर

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  12. बहुत ही भावपूर्ण कहानी...
    और बहुत ही बेहतरीन...
    :-)

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  13. गज़ब लिखे हो यार ... मान गए ... :)

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  14. आपका बहुत आभार

    सादर
    -आकाश

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  15. लेखकीय संवेदना हर प्रकार के चरित्रों के साथ है ,
    बहुत अच्छा लगा !

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    1. धन्यवाद प्रतिभा जी ,

      सादर
      -आकाश

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  16. bahut hi sunder kissa, kissa kya ye bhi isi duniya ki ek sachchai hai. rochak prastuti.

    Shubhkamnayen

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    1. धन्यवाद प्रीती जी ,
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है |

      सादर

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  17. बहुत बढ़िया कहानी...!!!

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  18. Ahh..finally a story!! & well-concocted too!! You have a knack for writing..waiting from more posts from you :)

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