15 Feb 2014

आओ रोटी सेंकते हैं


घर बगल में जल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं ,
एक मुद्दा पल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं |
फिर गरीबों की गली में , रात भर रोया कोई ,
फिर शहर से एक भूखा , खुद-ब-खुद मिट जायेगा ,
फिर कहीं नारा उठेगा , मंदिरों का जोर से ,
मुल्क सारा इस ज़रा सी , बात पे बौरायेगा ,
तोड़ देगी दम कहीं , इंसान की लाज-ओ-शरम ,
और कहीं सुनसान में , एक आबरू लुट जायेगी ,
दिन में जो चेहरे , उठाएंगे किसी पर उँगलियाँ ,
रात में उनकी ही जैसे , आत्मा मर जायेगी ,
कान पर उंगली धरेंगे , मूँद लेंगे आँख को ,
कुछ नहीं बोलेंगे हम , घुटते हुए इंसाफ को ,
फर्ज की मिट्टी को देंगे , चुप के हाथों से जला ,
घोंट कर रख देंगे हम , इंसानियत का भी गला ,
रोज देखेंगे तमाशा , उसके घर की आग का ,
घर सुकूँ से चल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं |
दौर ये ही चल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं ||

पर पड़ोसी के यहाँ , फैली हुई इस आग को ,
आज न रोका , तो कल फिर , और ये बढ़ जायेगी ,
अब तलक जो आग , उनके घर की आफत थी , वो कल
और भी विकराल हो के , घर हमारे आयेगी ,
सबसे पहले घर जलेंगे , घर के संग में बस्तियाँ ,
देखते ही देखते , जलने लगेगा ये जहाँ ,
हम जो चुप बैठे थे कि , महफूज हैं इस आग से ,
किस तरह बच पाएंगे , दुनिया से बाहर भाग के ,
कल को जब अपने ही घर में , आग लग जायेगी, फिर
तब भला किस से कहेंगे , आओ रोटी सेंकते हैं ?
घर हमारा जल रहा है , आओ पानी फेंकते हैं ,
एक मुद्दा पल रहा है , आओ मिलकर देखते हैं |

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24 Nov 2013

आओ ढूंढें



खुशी से भरा एक जहाँ आओ ढूंढें ,

उम्मीदों भरा आसमां आओ ढूंढें |


जिसका महल खून से न रंगा हो ,

ऐसे खुदा का निशां आओ ढूंढें |

मुहब्बत हमारी जो खो सी गयी है ,

उसे अपने ही दरमियाँ आओ ढूंढें |

कागज के फूलों को कब तक सजाएं ,

गुलों से सजा गुलिस्तां आओ ढूंढें |

आँखों का पानी इधर ही गिरा था ,

शहर के शरीफों यहाँ आओ ढूंढें ||
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28 Jul 2013

आकर खुद अनुभव कर जाओ


एक चिट्ठी राम के नाम -


मूरत में बसने वाले राम ,

दुनिया में फिर आ जाओ ,

भूखे कैसे सोते हैं ,

आकर खुद अनुभव कर जाओ |



मगर जन्म लेना अबकी तुम ,

किसी गरीब के घर में ,

बचपन कैसे खोते हैं ,

आकर खुद अनुभव कर जाओ |



मंदिर के भीतर तुम अपनी ,

मूरत पाओगे ; संपन्न-सुखी ,

बाहर बच्चे क्यूँ रोते हैं ,

आकर खुद अनुभव कर जाओ |



रहकर दुनिया में देखो ,

तेरे नाम पे कितने क़त्ल हुए ,

लाशों को कैसे ढोते हैं ,

आकर खुद अनुभव कर जाओ |



एक बार ज़रा तुम भी टूटो ,

हालातों की मुट्ठी में ,

हम हिम्मत कैसे खोते हैं ,

आकर खुद अनुभव कर जाओ |



रामराज्य तो कहीं नहीं ,

रावण से बदतर हालत है ,

फिर भी कैसे खुश होते हैं ,

आकर खुद अनुभव कर जाओ |



भले अँधेरे फैले हों ,

पर दिल में रोज सवेरे के

हम सपने कैसे बोते हैं ,

आकर खुद अनुभव कर जाओ |

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