28 Nov 2012

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो



अपनी आदत में कहीं मेरा भी अक्स पाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ,

आईना गौर से देखोगे , समझ जाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||


भले कितना बदल लो तुम , मुझे भुलाने के लिए , 

अपनी परछाई में मेरा भी रंग पाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||


तुम्हे क्यूँ लोग मेरे नाम से बुलाते हैं , 

पूछोगे किसी से , समझ जाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||


मेरी गली में न आना बिना ओढ़े नकाब ,

मेरी तरह तुम भी बदनाम किये जाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||


मेरी मौत पर भी लोग नहीं रोयेगे ,

मेरी जगह बस तुम बैठा दिए जाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो || 


मुझको जन्नत में नहीं जाना , मगर डरता हूँ 

मेरी वजह से तुम दोजख में चले जाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||


आईना गौर से देखोगे , समझ जाओगे ,

तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||
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8 comments:

  1. बहुत प्यारी रचना है आकाश....
    जगजीत जी की एक सुन्दर गज़ल का ख़याल आया...
    मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा
    दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा
    खुश रहो..
    सस्नेह
    अनु

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  2. मेरी गली में न आना बिना ओढ़े नकाब ,

    मेरी तरह तुम भी बदनाम किये जाओगे ,

    तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||

    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आकाश जी .आभार
    आत्महत्या -परिजनों की हत्या

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  3. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...

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  4. मेरी गली में न आना बिना ओढ़े नकाब ,

    मेरी तरह तुम भी बदनाम किये जाओगे ,

    तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||

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  5. "आईना गौर से देखोगे , समझ जाओगे
    तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो ||" कहने को "कुछ-कुछ" कह दिया पर ये इश्क है..यहाँ सब-कुछ एक हों जाता हैं..दो जान और रूह के बीच में...बाकि रचना तो जबर हैं ही.. :)

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  6. एक होने की जदो-जहद से निकली ये रचना बेहद उम्दा है आकाश जी.

    आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा ..अगर आपको भी अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़े।

    आभार!!

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  7. apni dhun me jahta hun me bhi tere jaisa hun ...bilkul vaisi hi hai aapki kvita bhav bhari .

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