7 Nov 2012

काश....

देखिये , कोई भी हंसेगा नहीं | ये प्यार-व्यार के बारे में हमसे लिखा नहीं जाता है | बहुत कोशिश करके कभी कुछ लिखा था  -



नजर खामोश रहती गर् जुबाँ कुछ बात कर पाती, 

कदम मासूम रहते जो तू हमारे साथ चल पाती ,

न जख्म यूँ पकता ,न तो नासूर यूँ बनते ,

गर् जख्म होती तू , तू ही मरहम लगा पाती !! 



मैं रात को छत पे सुकूं से नींद भर सोता , 

हर सुबह तू गर् प्यार से मुझको जगा जाती !! 


रहम मुझ पर भी होता उस खुदा का टूट कर हरदम , 

तेरी नजरो की रहमत गर् मुझे इक बार मिल जाती !! 


महकता सा मुझे महसूस होता कुदरत का हर जर्रा , 

तेरी साँसों की खुशबू जो मेरी साँसों में बस जाती !! 


मैं राह पर मुड़ – मुड़ के तुझको देखता था “काश...” , 

गली के मोड़ पर मुड़ने से पहले तू भी मुड़ जाती !!
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@!</\$}{
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13 comments:

  1. ह्म्म्म ! तो ये भी ....हा हा हा ..मैं तो हँसूंगी ही ...रोको भला...

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  2. काश ...

    एक खबर जो शायद खबर न बनी - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. कोशिश कामयाब होती है ... अच्‍छा लिखा है आपने
    वैसे ये तो पता है न जिस काम के लिये मना करो सब वही करते हैं :)

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  4. kisne kaha ki aap ......likhte rahiye achha likhate hain aap :)

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  5. Well written!! Good work!!

    Now please disclose for whom have you written these lines?? :P

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  6. अब इस रचना को क्या कहूँ.. गज़ल जैसी लग रही है, लेकिन गज़ल का एक अपना विन्यास और शिल्प होता है, उसके पैमाने से ये गज़ल नहीं है.. हाँ अगर इसे मैं गीत कहूँ तो बहुत अच्छा रहेगा.. सचमुच रूमानी गीत है.. लेकिन फिर से तुम्हें लय पर मिहनत करना होगा..
    इस गीत में बयान किये गए भाव बहुत ही सुन्दर हैं और इस नज़रिए से देखा जाए तो मैं कह सकता हूँ कि इसमें नयापन है.. लेकिन फिर से कई मिसरे/पंक्तियाँ व्याख्या की माँग करती हैं.. जैसे - "कदम मासूम रहते जो तू हमारे साथ चल पाती"- यहाँ पर कदम के मासूम होने का क्या मतलब है..?
    खैर तुम भी कहोगे कि बाऊ जी हमेशा ऐसी ही बातें करते हैं.. मगर क्या करूँ, जहाँ संभावनाएं दिखती हैं वहाँ लगता है कि बस ज़रा सा संभाल लूँ.. तभी तो कल रहूँ ना रहूँ.. मगर गर्व करूँ, तुमपर!!

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    1. आकाश सलिल दा की सलाह को हमारी भी सलाह समझो.....ये गज़ल लिखना इश्क करने से भी मुश्किल है :-)
      नज़्म लिखो ....छंद मुक्त गीत लिखो....जो दिल में आये वैसा लिखो..और लिखते रहो क्या पता शायर ही बन जाओ...एहसास बहुत खूबसूरत है.
      सस्नेह
      अनु

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  7. Very appealing and impressive creation.

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  8. The post is very informative. It is a pleasure reading it.

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  9. अगर आप इसको कोशिश का नाम दे रहे हैं तो मेहनत किसे कहेंगे.... :)

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