27 Feb 2013

उदास नज्म


कल रात जब जिक्र चला कुछ उदास नज्मों का, तो

तुमने डायरी के कुछ उनींदे पन्ने पलटे,

देर रात सोयी कुछ गजलों को जगाया,

कुछ मिसरों को पढ़ा, 

और एक मोड़ पर जाकर अचानक ठिठक सी गयी,

लिखा था,

“कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता |”

अतीत की शाख से कुछ फूल चुने तो थे हमने,

मगर सब मुरझाए हुए ही क्यूँ,

कुछ नयी कोंपलें भी थीं , कुछ खिले फूल भी थे,

आज सुबह हम खिले हुए फूल चुनेंगे,

आज सुबह हम कुछ खुशनुमा सी बात करेंगे ||
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8 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!

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  2. बेहतरीन प्रस्तुतीकरण,आभार.

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  3. खुशनुमा बातों से नए दरवाज़े खुलेंगे .... सकारात्मक भाव

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  4. आज सुबह हम खिले हुए फूल चुनेंगे,
    आज सुबह हम कुछ खुशनुमा सी बात करेंगे ||
    अनुपम भाव संयोजन ...

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  5. Shuruaat hi jab khushnuma ho to fir aage bahut kuch khush hone ke lie hoga,chalte rahiye :)

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  6. बस यू ही लिखते रहिये
    मुबारक हो

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  7. वहा बहुत खूब बेहतरीन

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में

    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

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  8. सहजता से कही गयी मन की अनुभूति
    बहुत सुंदर-- ----
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों,प्रतिक्रिया दें
    jyoti-khare.blogspot.in

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